कुल-गीत

विद्या के सिद्धपीठ जय महान, हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

भारत की भव्य भारती के स्वर तुम!
राष्ट्रभावना के संदेश मुखर तुम!

बलिदानों के गुरुकुल महाप्राण हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

हे अभिनव भारत के भाग्य-विधाता!
कोटि-कोटि जनता के मुक्ति प्रदाता!

जन-गण को करते नेतृत्व-दान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

ऋषियों की वाणी के तुम व्याख्याता!
नूतन विद्याओं के अनुसंधाता!

आत्मा के शिल्पी संकल्पवान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

गांधी की गरिमा से ओत-प्रोत तुम!
शिवप्रसाद की विभूति, शक्ति-स्रोत तुम!

तुममें भगवानदास मूर्तिमान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

कल्पना नरेन्द्रदेव की विराट तुम!
पुण्य भूमि भारत माँ के ललाट तुम!

दे रहे समन्वय का दिव्य ज्ञान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

इस विद्या-मंदिर की अमर भारती।
राष्ट्रदेवता की कर रही आरती!

ज्योतित हम दीपवर्तिका-समान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

सत्य अंहिसा के हे दृढ व्रतधारी!
युग-युग तक अटल रहे मूर्ति तुम्हारी!

युग-युग तक विश्व करे कीर्तिगान हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

नभ में लहराये यह पुण्य-पताका!
जिस पर है चित्र टँका भारत माँ का!

शंभु के त्रिशूल-शलाका-प्रमाण हे!
जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!

कुल-गीत के रचयिता

शम्भूनाथ सिंह (17 जून 1916 - 3 सितंबर 1991)

हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार शम्भुनाथ सिंह नवगीत के प्रवर्तकों में शुमार किए जाते हैं। शम्भूनाथ सिंह हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी, कवि और सामाजिक कार्यकर्ता भी थें। उनका जन्म रावतपार गांव, देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने हिन्दी में एम०ए० किया , डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एक शिक्षक के रूप में काम किया ततपश्चात वो यहाँ हिन्दी विभाग तथा मानविकी संकाय के प्रमुख भी रहें।
उन्हीने ही महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का कुल-गीत "विद्या के सिद्धपीठ जय महान, हे!, जय-जय हे चिर नवीन, चिर पुराण हे!" लिखा है।
डॉ० शम्भूनाथ सिंह जी ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के साथ-साथ डॉ० राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय और आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय का कुल-गीत भी लिखा है। इसके अलावा उन्होंने श्री गणेश राय स्नातकोत्तर महाविद्यालय डोभी चंदवक का भी कुल-गीत लिखा है।
शम्भूनाथ सिंह एक गीतकार कवि थे, हालांकि उन्होंने कुछ नाटक और साहित्यिक आलोचना भी लिखी है।
उन्होंने अपने कविता संग्रह दिवालोक को प्रकाशित करने के साथ नवगीत आंदोलन की शुरुआत की। इस पुस्तक में निराशा, निराशा और सौन्दर्य की चाह प्रमुख विषय हैं।
हिन्दी काव्य के इतिहास में उनका विशेष स्थान है। उनकी कविताओं में नई बौद्धिक चेतना दिखाई देती है। मानव जीवन में आधुनिक विसंगतियों का चित्रण उनकी रचनाओं की अनूठी विशेषता है।